वांछित मन्त्र चुनें

बृह॒स्पतिः॑ प्रथ॒मं जाय॑मानो म॒हो ज्योति॑षः पर॒मे व्यो॑मन्। स॒प्तास्य॑स्तुविजा॒तो रवे॑ण॒ वि स॒प्तर॑श्मिरधम॒त्तमां॑सि ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

bṛhaspatiḥ prathamaṁ jāyamāno maho jyotiṣaḥ parame vyoman | saptāsyas tuvijāto raveṇa vi saptaraśmir adhamat tamāṁsi ||

पद पाठ

बृह॒स्पतिः॑। प्र॒थ॒मम्। जाय॑मानः। म॒हः। ज्योति॑षः। प॒र॒मे। विऽओ॑मन्। स॒प्तऽआ॑स्यः। तु॒वि॒ऽजा॒तः। रवे॑ण। वि। स॒प्तऽर॑श्मिः। अ॒ध॒म॒त्। तमां॑सि ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:50» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:26» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (परमे) उत्तम (व्योमन्) व्यापक में (महः) बड़े (ज्योतिषः) प्रकाश से (प्रथमम्) पहिले (जायमानः) उत्पन्न हुआ (सप्तास्यः) सात किरणरूप मुखों से युक्त (तुविजातः) बहुतों में प्रसिद्ध (सप्तरश्मिः) सात प्रकार के किरणों से युक्त (बृहस्पतिः) बड़ा सूर्य (रवेण) शब्द से अर्थात् गति शब्द से (तमांसि) रात्रियों को (वि, अधमत्) दूर करता है, वैसे बड़ा विद्वान् उपदेश से अविद्या का निवारण करके विद्या को प्रकट करे ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वानो ! जैसे सूर्य्य में सात प्रकार के रूपवाले तत्त्व मिले हुए वर्त्तमान हैं, जिन किरणों के द्वारा सब से रसों को ग्रहण करता है, वैसे पाँच ज्ञानेन्द्रिय, मन और आत्मा से सब विद्याओं को ग्रहण करके पढ़ाने और उपदेश करने से सबके अज्ञान को दूर करके विद्या के प्रकाश को उत्पन्न करो ॥४॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यथा परमे व्योमन् महो ज्योतिषः प्रथमं जायमानः सप्तास्यस्तुविजातस्सप्तरश्मिर्बृहस्पतिस्सूर्य्यो रवेण तमांसि व्यधमत् तथैव महान् विद्वानुपदेशेनाऽविद्यां निवार्य्य विद्यां जनयेत् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (बृहस्पतिः) महान् (प्रथमम्) आदौ (जायमानः) (महः) महतः (ज्योतिषः) प्रकाशात् (परमे) प्रकृष्टे (व्योमन्) व्यापके (सप्तास्यः) सप्तकिरणा आस्यानि यस्य (तुविजातः) बहुषु प्रसिद्धः (रवेण) शब्देन (वि) (सप्तरश्मिः) सप्तविधकिरणः (अधमत्) धमति निराकरोति (तमांसि) रात्रीः ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो ! यथा सूर्य्ये सप्तविधरूपाणि तत्त्वानि मिलितानि यैः सर्वेभ्यो रसान् गृह्णाति तथैव पञ्चभिर्ज्ञानेन्द्रियैर्मनसात्मना च सर्वा विद्याः सङ्गृह्याऽध्यापनोपदेशाभ्यां सर्वेषामज्ञानं निवार्य्य विद्याप्रकाशं जनयन्तु ॥४॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो ! जशी सूर्यामध्ये सात प्रकारची तत्त्वे मिसळलेली आहेत, किरणांद्वारे तो सर्वांकडून रसांचे ग्रहण करतो, तशी पाच ज्ञानेंद्रिये, मन व आत्म्याने सर्व विद्या ग्रहण करून, शिकवून व उपदेश करून सर्वांचे अज्ञान दूर करून विद्येचा प्रकाश उत्पन्न करा. ॥ ४ ॥